गंगासागर मेला मकर संक्रांति की शुभ अवधि के दौरान मनाया जाता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, संक्रांति सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में आगमन का सूचक है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मकर संक्रांति उस समय शुरू होती है जब सूर्य देव (सूर्य देवता) मकर राशि में प्रवेश करते हैं और वहाँ एक महीने तक रहते हैं। एक राशि से दूसरे राशि में सूर्य के इस परिवर्तन का एक मजबूत ज्योतिषीय महत्व है क्योंकि मकर शनि का घर है, और शनि (सूर्य देव के पुत्र) एवं सूर्य दोनों के बीच शत्रुता का संबंध है। परंतु मकर संक्रांति के दौरान सूर्य पुत्र के प्रति अपना क्रोध भूल जाते हैं और सौहार्द एवं सद्भावपूर्ण संबंध अभिव्यक्त करते हैं। इसलिए, यह एक शुभ अवधि का प्रतीक है जो रिश्तों के महत्व को उजागर करती है।

मकर संक्रांति लंबे समय तक चली सर्दी के अंत को दर्शाती है और फसलों के मौसम का स्वागत करती है। हिंदू संस्कृति के अनुसार, उम्मीदों का यह मौसम, नई शुरुआतों का यह मौसम बदलाव की ओर पवित्र कदम बढ़ाने का संकेत है। अशुभ काल (ठंड भरी सर्दी और लंबी रात) का अंत होता है और एक आदर्श मौसम का शुभारंभ होता है।

इस अवधि में मौसम में बेहतर बदलाव नजर आते हैं। यह मेला शीतकालीन संक्रांति के दौरान आयोजित होता है, जब दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। यह परिवर्तन ज्योतिष प्रथाओं और खगोलीय गतिविधियों के बीच एक अंतर्निहित घनिष्ठ संबंध को प्रस्तुत करता है। वैदिक काल से ही ज्ञान की यह प्राचीन प्रणाली भारतीय सभ्यता को अपने मार्गदर्शन से रौशन करती रही है और सबसे श्रद्धाजनक एवं प्रेरणादायी तथ्य यह है कि यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है!

  1. प्राचीन समय की चन्द्र-सौर चक्र की विश्वास प्रथा - आज की भी परंपरा है
  2. धार्मिक भाव के साथ समापन