इसमें कोई दो राय नहीं है कि धर्म हमारी भूमि की संस्कृति से बड़ी गहराई से जुड़ा हुआ है एवं मकर संक्रांति को आयोजित गंगासागर इन धार्मिक मान्यताओं से अछूता नहीं रहा है।

गंगासागर एक तीर्थस्थल से कहीं बढ़कर है, यह आस्था के साथ भावनाओं का अन्तर्मिलन है, यह जीवन के परम आनंद का संगम है।

भारत के कई हिस्सों में, यह फसल की कटाई का समय है तो कुछ हिस्सों में इस ऋतु में फसलों की बोआई की जाती है। तभी तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि लोग सूर्य देव के सम्मुख सम्मान के साथ श्रद्धा अर्पित करते हैं जो जिन्होंने मानव को एक आदर्श जलवायु का उपहार प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त, वे धरती, फसल एवं पशुओं के प्रति भी अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

इस अवसर पर भारत के विभिन्न परिवारों में विविध ताज़ा सामग्रियों जैसे कि तिल और गुड़ से मीठे व्यंजन बनाये जाते हैं। आनंद का यह माहौल केवल खाने पीने की चीज़ों तक ही सीमित नहीं है, पतंगों को उड़ाने की एक महत्वपूर्ण परंपरा चली आ रही है। मूल रूप से यह उत्तर-भारत की एक प्रचलित प्रथा है जो अब भारत के कई हिस्सों में लोकप्रिय होने के साथ फैल चुकी है। दिल्ली में, 14 जनवरी हर साल पतंग उड़ाने के दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अतएव, हम कह सकते हैं कि यह हमारी भूमि के सामाजिक ताने-बानो से गहराई से जुड़ा हुआ है, इसकी संस्कृति का एक अपरिहार्य अमूल्य हिस्सा है जो हमें एक साथ एक बंधन में जोड़कर रखता है।